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बी.एड. सेमेस्टर-1 द्वितीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के सामाजिक परिप्रेक्ष्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2698
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 द्वितीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के सामाजिक परिप्रेक्ष्य

प्रश्न- शान्तिपूर्ण व सामूहिक जीवन हेतु विभिन्नता में एकता की स्थापना करने वाले घटकों का वर्णन कीजिए।

उत्तर -

शान्तिपूर्ण व सामूहिक जीवन हेतु विभिन्नता में एकता की स्थापना

शिक्षा सामाजीकरण ही नहीं, बल्कि इससे कहीं अधिक है समाज में जब भी कोई अवांछनीय सामाजिक व्यवस्था की स्थिरता के समक्ष एक चुनौती बनकर खड़े होते हैं तब समाज की नियमन प्रणाली अपनी प्रभावोत्पादकता और फलप्रदाता के अस्तित्व की रक्षा की गुहार लेकर शिक्षा के समक्ष आ खड़ी होती है। और शिक्षा तात्कालिक आवश्यकताओं के अनुसार अथवा रूप परिवर्तित करके किंचित नया स्वरूप धारण कर चुनौती का उत्तर देने के लिए तैयार हो जाती है। हिंसा, घृणा और आतंकवाद से पीड़ित वर्तमान इक्कीसवी सदी के युग में भी शिक्षा समाज में व्याप्त कई विभिन्नताओं का सामना करने हेतु शान्ति शिक्षा के रूप में एक नया सम्प्रत्यय लेकर आयी है। शान्ति शिक्षा शान्ति की शिक्षा है। यह मानव मात्र को अशान्ति, हिंसा व संघर्ष के तत्वों से मुक्त कराने का प्रयास है। शिक्षा का उद्देश्य मानस का विकास करना है। बालक के सोचने-विचारने के क्षेत्र को विस्तृत बनाना है। बड़े लाभ के छोटे लाभ का त्याग करना सिखाना है बालक को जिम्मेदार नागरिक के रूप में तैयार करना है जो अपने पड़ोसियों के साथ रहना सीखे, सुख-दुख में सहायक हो सके। तात्पर्य यह है कि बालक का शिक्षा से बौद्धिक शारीरिक एवं आत्मिक विकास प्रकृतिक दत्त सीमाओं तक अधिकतम होना चाहिए। एक बार एटली ने तो यहाँ तक कह दिया कि युद्ध मानव के मस्तिष्क में पैदा होता है। अतः मानव के मस्तिष्क को शान्ति के लिए प्रशिक्षित किया जाना जाहिए।

प्रायः सरसरी तौर पर देखने पर तो भारत विभिन्नताओं का समूह दिखाई देता है। परन्तु भारत की यही विशेषता उसमें व्याप्त विविधता में एकता के दर्शन कराने में सक्षम है। परन्तु इसके लिए हमें मनुष्यों के दृष्टिकोण में बदलाव लाना होगा। उन्हें "वसुधैव कुटुम्बकम व सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वेसन्तु निरामयाः " के वास्तविक अर्थ को समझने के लिए तैयार करना होगा, क्योंकि उचित शिक्षा की सार्थकता विश्व को जीवन के अर्थ के समग्र रूप से समझने में ही निहित है और किसी भी समग्रता को टुकड़ों के माध्यम से नहीं देखा जा सकता है। जीवन को बिना समन्वित रूप से समझे हमारी व्यक्तिगत व सामूहिक समस्यायें और अधिक गम्भीर व व्यापक हो जायेगी। शिक्षा का लक्ष्य केवल विद्वानों की खोज करना ही नहीं है बल्कि उसका लक्ष्य भयमुक्त वातावरण का सृजन करना व दो व्यक्तियों के बीच शान्ति की स्थापना करना भी है। दरअसल शान्ति तो मनुष्य के भीतर ही होती है। यह बाहर से आरोपित कोई वस्तु नहीं है। जिसे प्राप्त करना है अथवा जिसे स्थापित करना है। जरूरत इस बात की है कि मन के भीतर वास करने वाली शान्ति को स्थायी रूप दिया जाये और यह तभी सम्भव है जब किसी भी प्रकार के असन्तोष, असहिष्णुता व कट्टरवाद को पनपने ही न दिया जाये एवं किसी भी छोटे-से छोटे विवाद को तुरन्त सुलझा लिया जाये। शान्ति की शिक्षा का उपगम तो यह बताता है कि शान्ति के विकास के लिए पृथक कक्षाओं की आवश्यकता नहीं है। और न ही प्रत्यक्ष शिक्षण की बल्कि पाठ्यचर्या के विषय क्षेत्रों की शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के ताने-बाने में ही शान्ति की शिक्षा को बुना जाना चाहिए। शान्ति तो मनुष्यों के अन्तःकरण में निहित है। अतः उसे विषयों के प्रभावी शिक्षण के समय उद्दीपन करने की ही आवश्यकता  है।

शान्तिपूर्ण व सामूहिक जीवन हेतु विविधता में एकता की स्थापना करना भारतीय समाज एवं संस्कृति के अन्तर्गत पायी जाने वाली विभिन्नताओं के कारण भारत में प्रजाति, संस्कृति, भाषा, धर्म, जलवायु, जनसंख्या एवं भौगोलिक दृष्टि से अनेक विभिन्ताएँ दिखाई देती हैं। किन्तु यदि हम शान्तिपूर्ण व सामूहिक जीवन जीने हेतु प्रयासरत है तो हमें इन विभिन्नताओं में भी एकता की तलाश करनी होगी। इन विविधताओं के पीछे जो आधारभूत एकता है उसके बारे में राधाकमल मुखर्जी ने पंडित नेहरू के विचारों का इस प्रकार उल्लेख किया है पं. नेहरू ने एक बार कहा था कि “भारत का सिंहावलोकन करने वाले भारत की अनेकता और विभिन्नता से बहुत अधिक प्रभावित हो जाते हैं। वे भारत की एकता को साधारणत: नहीं देख पाते। यद्यपि युगों-युगों से भारत की मौलिक एकता ही उसका महान व मौलिक तत्व रहा है। "

भारत की एकता के सम्बन्ध में सर हर्बर्ट रिजले ने कहा है कि, “भारत में धर्म, रीति-रिवाज और भाषा तथा सामाजिक और भौतिक विभिन्नताओं के होते हुए भी जीवन की एक विशेष एकरूपता कन्याकुमारी से लेकर हिमालय तक देखी जा सकती है।" इसी प्रकार भारतीय संस्कृति की एकता के विषय में सी. ई. एम. जोड (C. E. M. Joad) का मानना है। जो भी कारण हो, विचारों तथा जातियों के अनेक तत्वों में समन्वय, अनेकता में एकता उत्पन्न करने की भारतीयों की क्षमता एवं तत्परता ही मानव जाति के लिए इनकी विशिष्ट देन रही है।

(1) भौगोलिक विविधताओं में व्याप्त भौगोलिक एकता - भौगोलिक दृष्टि से भारत अनेक विविधताओं वाला देश है। इसमें उत्तर का पर्वतीय क्षेत्र है, दक्षिण का पठार है राजस्थान का मरुस्थल है तो गंगा-सिन्धु का मैदान व समुद्रीतटीय मैदान भी है। इसी कारण यहाँ जलवायु में भी विभिन्नता पाकी जाती है। परन्तु यहाँ के निवासी अपने में अलग रहते हुए भी एकता का अनुभव करते रहे हैं। जब कभी भी बाह्य संस्कृतियों से सम्पर्क और युद्ध का मौका आया है। तब देश के निवासियों ने अपने आपको सदैव एक समझा है।

(2) धार्मिक विविधताओं के मध्य व्याप्त धार्मिक एकता - धार्मिक दृष्टि से भी इस देश में अनेक धर्म व सम्प्रदायों के होते हुए भी भारत को सामाजिक एकीकरण में धर्म के लिए ही पवित्र भूमि है। बल्कि यह सिक्ख जैन और बौद्ध धर्मानुयायियों के लिए भी पवित्र स्थल है। मुसलमानों और ईसाइयों के लिए भी भारत में अनेक तीर्थस्थान हैं। विभिन्न धार्मिक समूहों में जाति प्रथा पायी जाती है। परन्तु इससे इन सब में एक समान सामाजिक युक्ति दिखाई देती है। सभी धर्मों व पंथों के सिद्धान्त प्रायः एक ही हैं। विचारकों ने ईश्वर या मोक्ष प्राप्ति के तीन ही तरीके बतलाये हैं- ज्ञान कर्म एवं योग। योग में भक्ति और साधना दोनों ही सम्मिलित हैं। कर्म का आशय सदाचरण है ज्ञान, भ्रम और अन्ध विश्वासों को हटाता है। और सत्य के मार्ग पर बढ़ने की प्रेरणा देता है। भारत में पाये जाने वाले सभी धर्म इन्हीं तीन में से किसी एक मार्ग को लेकर चलते हैं। सभी धर्म, मोक्ष, कर्म, पुनर्जन्म और ईश्वरवाद के सिद्धान्तों को मानते हैं। सभी धर्मों की मान्यतायें भी प्रायः एक ही हैं। और सबसे बड़ा उद्देश्य शान्ति की पुर्नस्थापना ही है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत को एक धर्म निरपेक्ष राज्य घोषित करना, इसमें पाई जाने वाली धार्मिक एकता का ही सूचक है।

(3) भाषायी विविधता में एकता - भारत के विभिन्न प्रान्तों में अनेक भाषायें अस्तित्व में रही हैं। इन विभिन्न भाषाओं के कारण ही भारत में विविधता दिखाई देती है। वर्तमान में भारत के संविधान द्वारा 22 भाषाओं को मान्यता प्रदान करने के अतिरिक्त भारत के विभिन्न भागों के लगभग 545 भाषायें व्यवहार में लायी जाती है। यह भी सच है कि भारत में भाषा के नाम पर सदैव विवाद रहा है। भाषा के आधार पर राज्यों के निर्माण की बात की गयी हैं बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और पंजाब हिन्दी भाषा राज्य है। अन्य राज्य असम, बंगाल, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, गुजरात महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में अपने प्रदेश की भाषा बोली जाती है। भारत में अंग्रेजी भाषा परिवारों से सम्बन्धित है- इण्डो आर्यन द्रविड़ और यूरोपीय। इनमें बंगाली, मराठी, गुजराती, उड़िया, पंजाबी, बिहारी, राजस्थानी, असमी, संस्कृत, हिन्दी, सिन्धी और कश्मीरी भाषायें इण्डों आर्यन है। तमिल, तेलगू, कन्नड़ और मलयालम द्रविड़ है। और अंग्रेजी, पुर्तगाली और फ्रेंच युरोपीय भाषायें हैं। इनमें संस्कृत एक ऐसी भाषा है। जिसकी रचना शैली और शब्द भण्डार का दूसरी भाषाओं पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा है। द्रविड़ परिवार की तमिल भाषा में संस्कृत के अनेक शब्द हैं। संस्कृत को भारतीय भाषाओं का आधार माना जाता है। वैसे सभी भाषाओं की व्याकरणिक संरचना, शब्द भण्डार समान हैं। इससे स्पष्ट होता है कि भारतीय भाषायें भी संश्लिष्ट रूप में जीवित है। सामाजिक एकीकरण में भाषा की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हिन्दू और मुस्लिम संस्कृति के सम्मिलन में एक मिली-जुली संस्कृति का जन्म हुआ। आज भी भारत में 72 प्रतिशत भारतीय आर्य भाषायें और 20 प्रतिशत द्रविड़ भाषायें बोली जाती हैं।

(4) जातीय व प्रजातीय विभिन्नता में एकता - भारत में अनेक जातियों के सम्मिश्रण के बावजूद सभी जातियों की अपनी-अपनी विशेषतायें परिलक्षित होती हैं व इनमें व्याप्त अनेक समानतायें सम्पूर्ण भारत की सांस्कृतिक समाज की एकता को भी आभासित करती है। सभी जातियाँ कर्म, पुर्नजन्म मोक्ष, संस्कार, पुरुषार्थ आदि को किसी न किसी रूप में स्वीकार करती है। इसी प्रकार कला, शैली आदि अनेक रूपों में भारतीय संस्कृति की एकता सर्वत्र विद्यमान हैं।

(5) राजनीतिक विविधता में व्याप्त राजनीतिक एकता - राजनीतिक दृष्टि से भी भारतीय संस्कृति विविधता लिए हुए है तथा प्राचीन काल में देश की विशालता व यातायात के पर्याप्त साधनों के अभाव में यह परिलक्षित भी होती है। किन्तु मगध के अजात शत्रु मौर्य, आन्ध्र और गुप्त सम्राटों ने राजनैतिक परम्परा की एकता को बनाये रखा। मध्य युग में भी अकबर, औरंगजेब व मराठों के पेशवाओं ने भारत की राजनैतिक एकता को बाँधे रखा। उस समय भी केन्द्र से सारे साम्राज्य का शासन संचालित होता था। आज भी स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् हमारे यहाँ प्रजातांत्रिक प्रणाली को अपनाया गया है। हमारे देश में अनेक राजनीतिक दल हैं तथा व्यक्तियों को अपने दृष्टिकोण के अनुसार इनका समर्थन करने की स्वतन्त्रता है। कभी-कभी राजनैतिक विचारधाराओं जैसे साम्यवादी अथवा प्रतिक्रियावादी अथवा समाजवादी एवं पूँजीवादी में संघर्ष की स्थिति पैदा हो जाती है। परन्तु इससे सांस्कृतिक संघर्ष की स्थिति नहीं बनती, क्योंकि संघर्ष विचार शिविरों का नहीं, राजनीतिक नेताओं के अहम और सत्ता की भूख का है। अतः यह संघर्ष भी सतही तौर पर सुलझाया जा सकता है व इससे भारतीय संस्कृति की एकता खतरे में नहीं पड़ सकती।

(6) कला व साहित्य में एकता - भारतीय जीवन में कला व साहित्य की एकता भी बहुत महत्वपूर्ण है। चित्रकला, मूर्तिकला स्थापत्य कला एवं नृत्य, संगीत आदि कलाएँ भारत की एकता के भी परिचायक है। कर्नाटक का यक्षगान, केरल का कथकली भारत नाट्यम, कुचीपुड़ी, मोहिनी अट्टम, ओडिसी, मणिपुरी आदि सभी प्रकार के शास्त्रीय नृत्य सम्पूर्ण भारत में प्रचलित है। देश के विभिन्न भागों में बने मन्दिर - विहारों में बोध गया व राजगीर, उत्तर प्रदेश में प्रचलित है। देश के विभिन्न भागों में बने मन्दिर - विहारों में बोध गया व राजगीर, उत्तर प्रदेश में सारनाथ, मध्य प्रदेश के विदिशा में साँची के स्तूप महाराष्ट्र के मराठावाड़ा जिले में स्थित अजन्ता, एलोरा व ऐलीफैन्टा की गुफाएँ, अमृतसर का स्वर्ण मन्दिर आदि सभी भारतीय कला व सांस्कृतिक विरासत के ही प्रतीक हैं। कई इस्लामिक मस्जिदें, स्मारक चिन्ह व तीर्थस्थान भी सम्पूर्ण भारत में देखे जा सकते हैं जिनमें कुछ अपनी शिल्प कला के लिए सर्वविदित हैं। इसी प्रकार भारतीय शास्त्रीय संगीत भी भारतीय सांस्कृतिक एकता को प्रदर्शित करता है। जिसकी जड़ें सामवेद में देखी जा सकती हैं। लोक धुनें जैसे- भूपाली राग, आहरि भैरव एवं ध्रुपद, ठुमारी ख्याल व गजलें सम्पूर्ण भारत में प्रचलित हैं। जो हिन्दू और मुसलमान घराने की एकता का चित्र प्रस्तुत करती हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- समाजशास्त्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- समाजशास्त्र को जन्म देने वाली प्रवृत्तियाँ कौन-कौन-सी हैं?
  3. प्रश्न- शाब्दिक दृष्टि से समाजशास्त्र का अर्थ बताइये।
  4. प्रश्न- पारिभाषिक दृष्टि से समाजशास्त्र का अर्थ समझाइये |
  5. प्रश्न- समाजशास्त्र की वास्तविक प्रकृति स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- भारतीय समाज के आधुनिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  7. प्रश्न- बालक पर भारतीय समाज के विभिन्न प्रभावों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
  8. प्रश्न- वर्तमान सामाजिक व्यवस्था को देखते हुए पाठ्यक्रम में किस प्रकार के बदलाव किये जाने चाहिये?
  9. प्रश्न- शिक्षा की समाजशास्त्रीय प्रवृत्ति ने शिक्षा में कौन-सी नयी विचारधाराओं को उत्पन्न किया?
  10. प्रश्न- शान्तिपूर्ण व सामूहिक जीवन हेतु विभिन्नता में एकता की स्थापना करने वाले घटकों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- शान्तिपूर्ण एवं सामूहिक रहने के लिये विभिन्नता में एकता स्थापित करने में शैक्षिक संस्थाओं की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  12. प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता का अर्थ स्पष्ट करते हुए धर्मनिरपेक्षता की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  13. प्रश्न- भारतीय सन्दर्भ में धर्मनिरपेक्ष राज्य की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता सम्बन्धी प्रावधानों को भी स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता को प्रोत्साहित करने वाले कारक कौन-से हैं? धर्मनिरपेक्षता के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में होने वाले सामाजिक परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए।
  15. प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता के कारण भारतीय समाज में क्या परिवर्तन हुए?
  16. प्रश्न- धर्मनिरपेक्ष शिक्षा की विशेषताओं एवं इसके विकास में विद्यालय की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  17. प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता के विकास में विद्यालय की क्या भूमिका है?
  18. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? इसकी प्रक्रिया, रूप एवं प्रमुख कारकों पर प्रकाश डालिये।
  19. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया का वर्णन कीजिये।
  20. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के रूप बताइये।
  21. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं?
  22. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन और शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।
  23. प्रश्न- आर्थिक विकास का क्या अर्थ है? आर्थिक विकास के साधन के रूप में शिक्षा के योगदान को स्पष्ट कीजिये।
  24. प्रश्न- संस्कृति से आप क्या समझते हैं? संस्कृति की आवश्यकता एवं महत्त्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  25. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को समझाइए।
  26. प्रश्न- "शिक्षा एक सामाजिक एवं गत्यात्मक प्रक्रिया है। " इस कथन की व्याख्या कीजिए।
  27. प्रश्न- शिक्षा का समाजशास्त्रीय सम्प्रत्यय स्पष्ट कीजिए।
  28. प्रश्न- शिक्षा प्रक्रिया की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- सांस्कृतिक परिवर्तन से क्या तात्पर्य है? सांस्कृतिक परिवर्तन लाने में शिक्षा की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  30. प्रश्न- समाजशास्त्र और शिक्षाशास्त्र में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
  31. प्रश्न- समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य से आप क्या समझते हैं?
  32. प्रश्न- समाजशास्त्र और शिक्षाशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- व्यक्ति और समाज के मध्य सम्बन्धों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  34. प्रश्न- वर्तमान समाज में परिवार का स्वरूप बदल गया है। स्पष्ट कीजिए।
  35. प्रश्न- भारतीय सामाजिक व्यवस्था में असमानताओं को दूर करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए।
  36. प्रश्न- सामाजीकरण में परिवार का क्या महत्त्व है?
  37. प्रश्न- सामाजिक व्यवस्था की मुख्य विशेषतायें बताइये।
  38. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में बाधा उत्पन्न करने वाले प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं?
  39. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  40. प्रश्न- भारतीय सांस्कृतिक धरोहर की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
  41. प्रश्न- सांस्कृतिक विरासत से आप क्या समझते हैं? यह शिक्षा से किस प्रकार सम्बन्धित है?
  42. प्रश्न- सांस्कृतिक विकास की कुछ समस्याएँ बताइये।
  43. प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना से आप क्या समझते हैं?
  44. प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारकों का वर्णन कीजिए।
  45. प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारक का उल्लेख कीजिए।
  46. प्रश्न- शिक्षा सांस्कृतिक परिवर्तन कैसे लाती है?
  47. प्रश्न- शिक्षा के सामाजिक आधार से क्या तात्पर्य है?
  48. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (समाजशास्त्र और शिक्षा का सम्बन्ध)
  49. प्रश्न- संविधान की परिभाषा दीजिये। संविधान की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिये।
  50. प्रश्न- भारतीय संविधान की अवधारणा बताइए। भारतीय संविधान के अन्तर्गत मौलिक अधिकारों एवं कर्त्तव्यों का वर्णन कीजिये।
  51. प्रश्न- मौलिक अधिकारों का महत्व तथा अर्थ बताइये। मौलिक अधिकार व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  52. प्रश्न- भारतीय नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
  53. प्रश्न- भारतीय संविधान के अन्तर्गत वर्णित शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न धाराओं का उल्लेख कीजिये।
  54. प्रश्न- भारतीय संविधान में शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न प्रावधान क्या-क्या हैं?
  55. प्रश्न- राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों से आप क्या समझते हैं? भारतीय संविधान में लिखित नीति-निदेशक तत्त्वों का उल्लेख कीजिये।
  56. प्रश्न- समानता, बन्धुता, न्याय व स्वतंत्रता की संवैधानिक वादे के संदर्भ में शिक्षा के लक्ष्यों से सम्बन्धित संवैधानिक मूल्यों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- संविधान सभा के प्रमुख सदस्यों की कार्यप्रणाली के विषय में बताइए तथा संविधान निर्माण की विभिन्न समितियाँ कौन-सी थीं?
  58. प्रश्न- प्रस्तावना से क्या आशय है? भारतीय संविधान की प्रस्तावना तथा इसके महत्व को स्पष्ट कीजिए।
  59. प्रश्न- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के उल्लेख की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखिए।
  60. प्रश्न- मौलिक कर्त्तव्य कौन-कौन से हैं? इनके महत्व को स्पष्ट कीजिए।
  61. प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों की प्रकृति तथा उनके महत्व का उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- राज्य के नीति निदेशक तत्वों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  63. प्रश्न- भारतीय संविधान में अनुच्छेद 45 का वर्णन कीजिए।
  64. प्रश्न- प्रजातन्त्र का अर्थ स्पष्ट करते हुए प्रजातन्त्र के गुण-दोषों का विवेचन कीजिए।
  65. प्रश्न- प्रजातन्त्र के प्रमुख गुण व दोषों का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- लोकतंत्र का क्या अर्थ है? भारतीय लोकतंत्र के सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
  67. प्रश्न- भारतीय लोकतन्त्र के मूल सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
  68. प्रश्न- लोकतंत्रीय समाज में शिक्षा के क्या उद्देश्य होने चाहिए? उनमें से किसी एक की सविस्तार विवेचना कीजिए।
  69. प्रश्न- "आधुनिक शिक्षा में लोकतांत्रिक प्रवृष्टि दृष्टिगोचर होती है।' स्पष्ट कीजिए तथा लोकतांत्रिक समाज में विद्यालयों की भूमिका पर भी प्रकाश डालिए।
  70. प्रश्न- जनतंत्र केवल प्रशासन की एक विधि ही नहीं है वरन् यह एक सामाजिक प्रणाली भी है। व्याख्या कीजिए |
  71. प्रश्न- भारत जैसे लोकतन्त्रीय राष्ट्र में शिक्षा के उद्देश्य किस प्रकार के होने चाहिए?
  72. प्रश्न- शिक्षा का लोकतन्त्रीकरण क्या है? स्पष्ट कीजिये।
  73. प्रश्न- जनतंत्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। जनतंत्र पर शिक्षा के प्रभाव की विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- शिक्षा में जनतन्त्र से आप क्या समझते हैं? सोदाहरण पूर्णतः स्पष्ट कीजिए।
  75. प्रश्न- विद्यालय में प्रजातन्त्र से आप क्या समझते हैं? विद्यालय में प्रजातान्त्रिक वातावरण बनाए रखने के लिए आप क्या प्रयास करेंगे?
  76. प्रश्न- लोकतंत्र और शिक्षा के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- लोकतंत्र और अनुशासन में सम्बन्ध बताइए।
  78. प्रश्न- लोकतंत्र और शिक्षक एवं शिक्षार्थी में सम्बन्ध बताइए।
  79. प्रश्न- लोकतंत्र में विद्यालयों की क्या भूमिका होती है?
  80. प्रश्न- लोकतंत्र में शिक्षा का अन्य पहलू क्या है?
  81. प्रश्न- लोकतंत्र के लिए शिक्षा की क्या आवश्यकता है?
  82. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (भारत का संविधान )
  83. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शिक्षा एवं प्रजातंत्र )
  84. प्रश्न- शैक्षिक अवसरों की समानता से आप क्या समझते हैं? समानता के क्षेत्र एवं भारत में यह कहाँ तक उपलब्ध है?
  85. प्रश्न- अनुसूचित जातियों से सम्बन्धित विभिन्न समस्याओं को बताइये तथा इनके समाधान के उपायों का उल्लेख कीजिए।
  86. प्रश्न- अनुसूचित जाति की समस्याओं के समाधान के उपाय बताइये।
  87. प्रश्न- अल्पसंख्यक की अवधारणा बताइये। अल्पसंख्यकों की शिक्षा के लिये किये गये प्रयासों का वर्णन कीजिये।
  88. प्रश्न- ईसाई धर्म ने हमारी शिक्षा व्यवस्था को किस प्रकार प्रभावित किया है? उचित उदाहरणों की सहायता से वर्णन कीजिए।
  89. प्रश्न- शिक्षा में सार्वभौमीकरण से क्या तात्पर्य है? शिक्षा में सार्वभौमीकरण की कितनी अवस्थायें एवं वर्तमान में इनकी आवश्यकता एवं महत्व के कारण बताइये।
  90. प्रश्न- शिक्षा की सार्वभौमीकरण की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिये।
  91. प्रश्न- सार्वभौम एवं समावेशी शिक्षा में शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को रोचक एवं प्रभावपूर्ण बनाने में शिक्षक की भूमिका की विवेचना कीजिये।
  92. प्रश्न- भारत में अधिगम संदर्भ में व्याप्त विविधताओं का वर्णन कीजिये।
  93. प्रश्न- भाषायी विविधता के संदर्भ में अध्यापक से क्या अपेक्षाएँ होती हैं?
  94. प्रश्न- 'जातीय व सामाजिक विविधता तथा अध्यापक' पर टिप्पणी लिखिए।
  95. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध से आप क्या समझते हैं? आज के युग में अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के विकास हेतु शिक्षा का कार्य और शिक्षा की योजना कीजिए?
  96. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के लिए शिक्षा का सिद्धान्त आवश्यक है समझाइये |
  97. प्रश्न- पाठ्यक्रम और शिक्षा विधि की समीक्षा कीजिए।
  98. प्रश्न- अध्यापक का योगदान व स्कूल का वातावरण के बारे में लिखिए।
  99. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना विकसित करने के पक्ष में तर्क दीजिए।
  100. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय भावना के प्रसार में यूनेस्को की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
  101. प्रश्न- यूनेस्को के उद्देश्य व कार्यों पर प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं? वैश्वीकरण के गुण एवं दोष बताइये।
  103. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय समझ की बाधाओं का वर्णन कीजिए।
  104. प्रश्न- भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता के प्रमुख कारण स्क्रेच स्रोत क्या हैं? इन्हें दूर करने हेतु व्यावसायिक सुझाव दीजिए।
  105. प्रश्न- शारीरिक चुनौतीपूर्ण बच्चों को विद्यालय पर समान शैक्षिक अवसर कैसे उपलब्ध कराए जा सकते हैं?
  106. प्रश्न- कोठारी आयोग के द्वारा प्रवेश शिक्षा के अवसर व समानता व इससे सम्बन्धित सुझाव बताइए।
  107. प्रश्न- राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में शिक्षा की असमानता को दूर करने के लिए क्या कदम उठाए गए?
  108. प्रश्न- शैक्षिक अवसरों की समानता से आप क्या समझते हैं?
  109. प्रश्न- राष्ट्रीय आयोग के शैक्षिक अवसरों की समानता सम्बन्धी सुझावों को बताइए।
  110. प्रश्न- स्त्री शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
  111. प्रश्न- भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता के विभिन्न स्वरूपों पर प्रकाश डालिए।
  112. प्रश्न- संविधान में अल्पसंख्यकों की सुविधाओं के लिये क्या प्रावधान किये गये हैं?
  113. प्रश्न- शिक्षा आयोग (1964-66) द्वारा शैक्षिक अवसरों की समानता के लिये दिये गये सुझाव क्या हैं?
  114. प्रश्न- शैक्षिक अवसरों की समानता में शिक्षक की क्या भूमिका है?
  115. प्रश्न- शिक्षा के सार्वभौमीकरण में बाधक 'शैक्षिक असमानता' को दूर करने के उपाय बताइये।
  116. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना से क्या तात्पर्य है? इसकी आवश्यकता क्यों अनुभव की गई?
  117. प्रश्न- शिक्षा किस प्रकार से अन्तर्राष्ट्रीय सदभावना का विकास कर सकती है?
  118. प्रश्न- विद्यालय को समाज से जोड़ने में शिक्षक की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
  119. प्रश्न- लोकतान्त्रिक अन्तःक्रिया के माध्यम से राष्ट्रीय एकीकरण में शिक्षक की क्या भूमिका हो सकती है?
  120. प्रश्न- आदर्श भारतीय समाज के निर्माण में शिक्षक की भूमिका।
  121. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शैक्षिक अवसरों की समानता )
  122. प्रश्न- सर्व शिक्षा के बारे में बताइये एवं इसके लक्ष्यों, क्रियान्वयन का वर्णन कीजिए।
  123. प्रश्न- राष्ट्रीय साक्षरता मिशन क्या है? विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- सम्पूर्ण साक्षरता अभियान का वर्णन कीजिए।
  125. प्रश्न- स्त्री साक्षरता कार्यक्रम पर टिप्पणी लिखिए।
  126. प्रश्न- मध्याह्न भोजन योजना का वर्णन कीजिए।
  127. प्रश्न- कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय योजना का वर्णन कीजिए।
  128. प्रश्न- कॉमन स्कूल पद्धति का वर्णन कीजिये।
  129. प्रश्न- सर्व शिक्षा अभियान के उद्देश्य बताइये।
  130. प्रश्न- शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?
  131. प्रश्न- समावेशी शिक्षा में शिक्षक की भूमिका स्पष्ट कीजिये।
  132. प्रश्न- आश्रम पद्धति विद्यालय के बारे में बताइये।
  133. प्रश्न- आश्रम पद्धति विद्यालय की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  134. प्रश्न- मिड डे मील स्कीम के गुण एवं दोष की गणना कीजिए।
  135. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शैक्षिक कार्यक्रम )

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